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130वाँ संविधान (संशोधन) विधेयक, 2025

 शासन व्यवस्था

130वाँ संविधान (संशोधन) विधेयक, 2025

केंद्रीय-राज्य मंत्रियों, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्रियों को भी “गंभीर आपराधिक आरोपों में 30 दिन सतत हिरासत” की स्थिति में पद से हटाने के लिये यह विधेयक लोकसभा में 20 अगस्त 2025 को प्रस्तुत किया गया.

प्रस्तावित संवैधानिक बदलाव

मौजूदा अनुच्छेदसंशोधन का सारक्रियान्वयन प्राधिकारी
75 (केंद्रीय मंत्रिपरिषद)यदि कोई मंत्री (PM सहित) पाँच वर्ष या अधिक दंडनीय अपराध में 30 दिन लगातार जेल में रहे, तो 31वें दिन तक राष्ट्रपति उन्हें प्रधानमंत्री की सलाह पर हटाएँ; सलाह न देने पर सदस्यता स्वतः समाप्तराष्ट्रपति
164 (राज्य मंत्रिपरिषद)उपर्युक्त ही प्रक्रिया; हटाने की सलाह मुख्यमंत्री देंगे; अनुपालन न होने पर मंत्री स्वतः पदच्युतराज्यपाल
239AA (दिल्ली NCT)दिल्ली के CM/मंत्री के लिये यही प्रावधान; हटाने के लिये राष्ट्रपति को CM की सलाहराष्ट्रपति
  • रिहाई के बाद पुनर्नियुक्ति सम्भव है, क्योंकि विधेयक अयोग्यता नहीं बल्कि पद-च्युति का तंत्र तय करता है.

विधेयक लाने की पृष्ठभूमि

  1. तमिलनाडु के मंत्री वी. सेन्थिल बालाजी (2023) और झारखंड के CM हेमन्त सोरेन जैसी घटनाएँ—जेल से ही पद पर बने रहना—ने संवैधानिक शून्य को उजागर किया।

  2. अभी केवल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में पाँच-वर्षीय सज़ा पर चुनाव-पदच्युत होने का प्रावधान है; पर मंत्रीपद छोड़ने का स्पष्ट प्रावधान नहीं.

  3. सुप्रीम कोर्ट ने लोक प्रहरी v. UoI (2014) निर्णय में दागी सांसदों की तत्काल अयोग्यता तय की, पर मंत्रियों के हटाने को “प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री का नैतिक दायित्व” कहा—विधेयक उसी नैतिक दायित्व को विधिसंगत बनाता है.

संभावित लाभ

  • राजनीति का अपराधीकरण घटेगा—सतत हिरासत की दशा में शासन ‘जेल से’ नहीं चलेगा.

  • जन-आस्था व संवैधानिक नैतिकता सुदृढ़; ‘क्लीन गवर्नेंस’ का संकेत.

  • केंद्र-राज्य सत्ता-समीकरण स्पष्ट: चयन करने वाले ही हटाने की सलाह देंगे, दुरुपयोग की स्थिति में स्वतः पदच्युति का सेफ़-गार्ड.

आलोचनाएँ व चुनौतियाँ

  1. चयनात्मक प्रवर्तन का जोखिम—राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी “गंभीर” धाराओं में गिरफ्तारी करवाकर पद से हटवा सकते हैं; 30 दिन की अवधि पर्याप्त हत्या-साज़िश मामलों में तो छोटी, पर आर्थिक अपराध जाँच में लंबी भी हो सकती है.

  2. न्यायिक परीक्षण लम्बा—आरोप सिद्ध न होने पर पुनर्नियुक्ति से शासन-सातत्य टूटेगा; प्रशासनिक अस्थिरता.

  3. संवैधानिक ढाँचे पर प्रश्न—मंत्री परिषद सामूहिक + व्यक्तिगत उत्तरदायित्व में निहित है; स्वतः पदच्युति से “कार्यपालिका के प्रमुख (PM/CM) का विवेक” सीमित होगा.

  4. लोकतांत्रिक विकल्प पहले से मौजूद—PM/CM विपक्ष दबाव, दल-आंतरिक शिष्टाचार व राज्यपालों की अनुच्छेद 164(1-B) सिफारिश के माध्यम से हटाये जा सकते हैं; नया प्रावधान अतिरिक्त हो सकता है.

आगे का रास्ता

  • विधेयक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है; संभावना है कि यह “गंभीर अपराध” एवं “निरंतर हिरासत” की परिभाषाएँ संकुचित करे तथा जमानत‒अंतरिम रिहाई संबंधी स्पष्टता जोड़े

  • सुप्रीम कोर्ट की परीक्षण-कसौटी होगी: क्या यह संशोधन कार्यपालिका-विधायिका संतुलन और संवैधानिक मूल-संरचना का उल्लंघन तो नहीं करता?

परीक्षा उपयोग

  1. GS-II (संविधान): अनुच्छेद 75, 164, 239AA में संशोधन; नीति-निर्माण बनाम संवैधानिक नैतिकता.

  2. GS-II (राजनीतिक सुधार): राजनीति के आपराधिकरण पर विवेचना; पूर्व के सुझाव—दाचा समिति, 2nd ARC.

  3. GS-IV (नैतिक शासन): प्रोबिटी in Public Life के उदाहरण.

अभ्यर्थियों को विधेयक के उद्देश्य-प्रावधान-विवाद के साथ सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक निर्णयों की तुलनात्मक मीमांसा तैयार करनी चाहिए।

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