अंतराष्ट्रीय संबंध
युद्ध अपराध
चर्चा में क्यों?अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आइसीसी) के अभियोजक ने एक जांच शुरू की है, जो यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई के दौरान नागरिकों की मौत के बढ़ते मामलों और संपत्ति के व्यापक विनाश के बीच युद्ध अपराधों, मानवता के खिलाफ अपराधों या नरसंहार के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले वरिष्ठ अधिकारियों को लक्षित कर सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय:
- ICC, हेग (नीदरलैंड्स) में स्थित एक स्थायी न्यायिक निकाय है, जिसका गठन वर्ष 1998 के अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय पर रोम संविधि (इसकी स्थापना और संचालन संबंधी दस्तावेज़़) द्वारा किया गया था और 1 जुलाई, 2002 को इस संविधि के लागू होने के साथ ही इसने कार्य करना प्रारंभ किया।
मुख्यालय: हेग, नीदरलैंड
सदस्य:
- 123 राष्ट्र रोम संविधि के पक्षकार हैं और आईसीसी के अधिकार को मान्यता देते हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस और भारत सदस्य नहीं हैं।
रोम संविधि ICC को चार मुख्य अपराधों पर क्षेत्राधिकार प्रदान करती है।
- नरसंहार का अपराध (crime of genocide)
- मानवता के विरुद्ध अपराध (crimes against humanity)
- युद्ध अपराध (war crime)
- आक्रामकता का अपराध (Crime of Aggression)
- ICC की रोम संविधि द्वारा स्थापित परिभाषा, 1949 जिनेवा अभिसमयों से ली गई है।
- सैनिकों अथवा अन्यान्य व्यक्तियों के प्रतिकूल (Hostile) या लगभग उसी तरह के काम, जिनके लिये पकड़े जाने पर शत्रुओं के द्वारा वे दंडित किए जा सकते हैं, युद्ध अपराध कहे जाते हैं।
- अंतरराष्ट्रीय कानून के विरूद्ध किए गए काम, जो अभियुक्त के अपने देश के कानून के प्रतिकूल हैं, युद्ध अपराध (War crimes) में अंतर्निहित होते हैं; यथा, व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से की गई लूट या हत्या, शत्रु राष्ट्र की ओर से या उसके आदेश से किए गए अपराध।
- जिनेवा कन्वेंशन (1949) तथा इसके अन्य प्रोटोकॉल वे अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ है जिनमें युद्ध की बर्बरता को सीमित करने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण नियम शामिल हैं।
- ये संधियाँ/प्रोटोकॉल उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं जो युद्ध में भाग नहीं लेते हैं, जैसे- नागरिक, सहायता कार्यकर्त्ता तथा जो युद्ध करने की स्थिति में नहीं होते जैसे- घायल, बीमार और जहाज़ पर सवार सैनिक एवं युद्धबंदी।
- पहला जेनेवा कन्वेंशन सम्मेलन 22 अगस्त 1864 को हुआ था
- इसमें चार प्रमुख संधि व तीन प्रोटोकॉल का उल्लेख किया गया है।
- इसमें युद्ध के दौरान घायल और बीमार सैनिकों को सुरक्षा प्रदान करना था।
- इसके अलावा इसमें चिकित्सा कर्मियों धार्मिक लोगों व चिकित्सा परिवहन की सुरक्षा की भी व्यवस्था की गई।
- इसमें समुद्री युद्ध और उससे जुड़े प्रावधानों को शामिल किया गया
- इसमें समुद्र में घायल, बीमार और जलपोत वाले सैन्य कर्मियों की रक्षा और उनके अधिकारों की बात की गई
- यह युद्ध के कैदियों यानी युद्ध बंदियों पर लागू हुआ है जिन्हें प्रिजनर ऑफ वाॅर कहा गया है।
- इस कन्वेंशन में कैद की स्थिति और उनके स्थान की सटीक रूप से परिभाषित किया गया है।
- इसमें युद्ध बंदियों के श्रम,वित्तीय संसाधनों का ज़िक्र और राहत और न्यायिक कार्रवाई के संबंध में व्यवस्था की गई है।
- इसमें युद्ध बंदियों को बिना देरी के रिहा करने का भी प्रावधान किया गया है।
- इसमें युद्ध वाले क्षेत्र के साथ-साथ वहां के नागरिकों का संरक्षण का भी प्रावधान किया गया।
- इसमें युद्ध के आसपास के क्षेत्रों में भी नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण का प्रावधान किया गया है ताकि किसी भी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन ना किया जा सके।
- चौथा जेनेवा कन्वेंशन के नियम व कानून 21 अक्टूबर 1950 से लागू किए गए।
- वर्तमान में जेनेवा कन्वेंशन को मानने वाले देशों की सदस्य संख्या 194 है।
- भारत जिनेवा कन्वेंशन का एक पक्षकार है।
- मानदंड : किसी व्यक्ति या सेना ने युद्ध अपराध किया है यह तय करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून तीन सिद्धांतों को निर्धारित करता है:
- भेद : वैसे उद्देश्यों को लक्षित करना अवैध है, जिनसे "नागरिकों के जीवन को आकस्मिक नुकसान तथा नागरिकों को चोट लगना, नागरिक उद्देश्यों को नुकसान पहुँचने की आशंका होती है।
- आनुपातिकता : आनुपातिकता सेनाओं को अत्यधिक हिंसा वाले हमले का जवाब देने से रोकती है।