ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company)
1 . स्थापना और उद्देश्य**
- 1600 ईस्वी में रानी एलिज़ाबेथ प्रथम ने “रॉयल चॉर्टर” जारी करके ‘द रिपब्लिक ऑफ द यूनाइटेड टावर्न्स ऑफ इंडिया’ को वाणिज्यिक व्यापार के लिए वैधता दी।
- मुख्य उद्देश्य था भारत और पूर्वी एशिया से मसालों, कपड़े, रेशम, चाय आदि की खरीद-फरोख्त करना।
- कंपनी ने प्रारम्भ में मालाबार तट (तेलंगाना) और सूरत (गुजरात) में अपने फैक्ट्री (व्यापारिक चौकी) स्थापित किए।
2 . राजनीतिक बदलाव और सैन्यकरण**
- 1757 में प्लासी की लड़ाई (Battle of Plassey) में कंपनी ने नवाब सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल पर प्रभाव जमाया।
- कंपनी ने अपनी निजी कमान वाले यूरोपीय और भारतीय सैनिकों (सेपॉय) की भर्ती बढ़ाई, जिससे यह न केवल व्यापारिक बल्कि राजनीतिक शक्ति भी बन गई।
- 1803 में सीसोदिया बघेलगढ़ (Battle of Assaye) और १८१८ में वाडिया घाट (Battle of Wadgaon) जैसी लड़ाइयों ने कंपनी की सैन्य छवि मजबूत की।
4 . प्रशासन एवं कर प्रणाली**
- बंगाल, बिहार और औड़िशा में कंपनी ने रेवन्यू व्यवस्था (Permanent Settlement, 1793) लागू की, जिससे ज़मींदारों (रजिवार्ता) को स्थायी राजस्व टेक्नोलॉजी मिली, परन्तु कृषकों का शोषण बढ़ा।
- वाणिज्य-प्रबंधक (Commercial residents) एवं गवर्नर-जनरल (Governor-General) जैसे पद सृजित किए गए, जिनके माध्यम से कंपनी ने सीधे क्षेत्रीय प्रशासन चलाया।
5 . आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव**
- कंपनी ने भारत को ब्रिटिश उपनिवेश की आर्थिक धुरी बनाया: कृषि उपज ब्रिटेन को निर्यात, सस्ते ब्रिटिश माल का आयात।
- भारतीय हस्तकला (टेक्सटाइल, कढ़ाई, जरी) चौपट होने लगी, छुआछूत और जाति-व्यवस्था में भी बदलाव हुए।
- बिहार-झारखंड भू-आंदोलन (Chuar Rebellion, 1766–71) और सिपाही विद्रोह (1857) जैसे स्थानीय विद्रोह कंपनी के अत्याचार के विरुद्ध थे।
6 . अंत एवं गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1858**
- 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (Indian Rebellion of 1857) के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपनी ‘पोस्ट-रेवोल्ट पॉलिसी’ लागू की।
- 1858 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट (Government of India Act, 1858) द्वारा कंपनी के सारे अधिकार ब्रिटिश क्राउन (महासभा) को हस्तांतरित कर दिए गए।
- 4 फरवरी 1874 को कंपनी का औपचारिक रूप से विघटन कर दिया गया।
सारांश
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी शुरुआत में एक वाणिज्यिक संगठन थी, परन्तु धीरे-धीरे राजनीतिक–सैन्य शक्ति बनकर भारत में औपनिवेशिक शासन की नींव रख गई। 1857 के विद्रोह के पश्चात् कंपनी का नियंत्रण ब्रिटिश शासन में मिल गया और 1874 में कंपनी का अधिकारिक अंत हुआ।