UNSC (United Nations Security Council ) में क्या है वीटो पावर ?
चर्चा में क्यों?
यूक्रेन पर आक्रमण के चलते कई देशों द्वारा रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में एक प्रस्ताव लाया गया।
- रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव पर वीटो कर दिया है जिसमें मॉस्को से यूक्रेन पर हमला रोकने और सभी सैनिकों को वापस बुलाने की मांग की गई।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शुक्रवार को इस प्रस्ताव के पक्ष में 11 और विपक्ष में एक मत (रूस का) पड़ा। चीन, भारत और संयुक्त अरब अमीरात मतदान से दूर रहे।
- यह प्रस्ताव विफल होने की स्थिति समर्थकों के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में ऐसे प्रस्ताव पर शीघ्र मतदान कराने की मांग का मार्ग प्रशस्त हो गया है। वैसे बता दें कि 193 सदस्यीय महासभा में वीटो का प्रावधान नहीं है। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि कब मतदान होगा।
- इससे रूस अंतरराष्ट्रीय रूप से अलग-थलग पड़ेगा।
प्रमुख बिंदु:
- UNSC को पूरी दुनिया में शांति, सद्भाव और सुरक्षा बनाए रखने का काम सौंपा गया है। UNSC में 15 सदस्य होते हैं और प्रत्येक सदस्य को एक मत का प्रयोग करने का अधिकार होता है।
- 1992 के बाद से, रूस वीटो का सबसे अधिक बार उपयोग करने वाला देश रहा है. इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन का स्थान आता है. फरवरी 2022 तक, रूस ने 141 बार अपने वीटो का इस्तेमाल किया है. वहीं अमेरिका 83 बार, यूके 32बार, फ्रांस 18 बार और चीन 17 बार इसका यूज कर चुका है
परिचय
- सुरक्षा परिषद,,संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों (महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक-सामाजिक परिषद, सचिवालय, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय, न्यासी परिषद) में से एक है, जिसका गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में हुआ था।
- इन देशों की सदस्यता दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के शक्ति संतुलन को प्रदर्शित करती है।
गठन एवं संरचना
- मूल रूप से सुरक्षा परिषद में 11 सदस्य थे जिसे 1965 में बढ़ाकर 15 कर दिया गया।
- सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन। सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार होता है।जबकि 10 अस्थायी सदस्यों की सूची में भारत, अल्बानिया, ब्राजिल, गैबन, घाना, आयरलैंड, केन्या, मैक्सिको, नॉर्वे, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) शामिल हैं।
- ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात तो यह है की इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो साल के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है।
- स्थायी और अस्थायी सदस्य बारी-बारी से एक-एक महीने के लिये परिषद के अध्यक्ष बनाए जाते हैं।
- अस्थायी सदस्य देशों को चुनने का उदेश्य सुरक्षा परिषद में क्षेत्रीय संतुलन कायम करना है।
- अस्थायी सदस्यता के लिये सदस्य देशों द्वारा चुनाव किया जाता है। इसमें पाँच सदस्य एशियाई या अफ्रीकी देशों से, दो दक्षिण अमेरिकी देशों से, एक पूर्वी यूरोप से और दो पश्चिमी यूरोप या अन्य क्षेत्रों से चुने जाते हैं।
भूमिका तथा शक्तियाँ
- सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली निकाय है जिसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम रखना है।
- इसकी शक्तियों में शांति अभियानों का योगदान, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को लागू करना तथा सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के माध्यम से सैन्य कार्रवाई करना शामिल है।
- यह सदस्य देशों पर बाध्यकारी प्रस्ताव जारी करने का अधिकार वाला संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र निकाय है।
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत सभी सदस्य देश सुरक्षा परिषद के निर्णयों का पालन करने के लिये बाध्य हैं।
- मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों के पास वीटो पॉवर है। वीटो पॉवर का अर्थ होता है ‘मैं अनुमति नहीं देता हूँ।’
- स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पाॅवर का इस्तेमाल करके उस फैसले को रोक सकता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद वर्तमान समय में भी द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की भू-राजनीतिक संरचना को दर्शाती है।
- परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन को 7 दशक पहले केवल एक युद्ध जीतने के आधार पर किसी भी परिषद के प्रस्ताव या निर्णय पर वीटो का विशेषाधिकार प्राप्त है।
- तब 113 देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य थे लेकिन आज इनकी संख्या 193 तक बढ़ गई है, फिर भी आज तक इसका विस्तार नहीं किया गया है।
- परिषद की वर्तमान संरचना कम-से-कम 50 वर्ष पहले की शक्ति संतुलन की व्यवस्था पर बल देती है। उदाहरण के लिये यूरोप जहाँ दुनिया की कुल आबादी की मात्र 5 प्रतिशत जनसंख्या ही निवास करती है, का परिषद में स्थायी सदस्य के तौर पर सर्वाधिक प्रतिनिधित्व है।
- ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात तो यह है की अफ्रीका का कोई भी देश सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है, जबकि संयुक्त राष्ट्र का 50 % से अधिक कार्य अकेले अफ्रीकी देशों से संबंधित है।
- पीसकीपिंग अभियानों (Peacekeeping Operations) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावज़ूद मौजूदा सदस्यों द्वारा उन देशों के पक्ष को नज़रंदाज़ कर दिया जाता है। भारत इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
UNSC के सुधार में बाधाएँ
- 5 स्थायी सदस्य देश अपने वीटो पाॅवर को छोड़ने के लिये सहमत नहीं हैं और न ही वे इस अधिकार को किसी अन्य देश को देने पर सहमत हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन सुरक्षा परिषद में किसी भी बड़े बदलाव के विरोध में हैं।
- G-4 (भारत, ब्राज़ील, जर्मनी, जापान) सदस्यों के बीच सुधार के एजेंडे के संदर्भ में मतभिन्नता है, उनके क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी भी जी-4 के स्थायी सदस्य बनने के विरोध में हैं।
- UNSC की संरचना में किसी भी बदलाव के लिये संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन की आवश्यकता होगी जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA - UN General Assembly ) की सदस्यता के दो-तिहाई बहुमत से हस्ताक्षरित और समर्थन प्रदान करना होगा तथा इसके लिये वर्तमान पाँचों स्थायी सदस्यों की सहमति की आवश्यकता होगी। संयुक्त राष्ट्र के भीतर दबाव समूह हैं जैसे सर्वसम्मति के लिये एकजुट होना (Uniting for Consensus-UfC) जो वीटो पॉवर के साथ स्थायी सदस्यता में किसी भी विस्तार के खिलाफ हैं।
वीटो (Veto)- वीटो (Veto) लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है ‘मैं अनुमति नहीं देता हूँ।’
- 1920 में लीग ऑफ नेशंस की स्थापना के बाद ही वीटो अस्तित्व में आया।
- 1945 में यूक्रेन के शहर याल्टा में एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की योजना बनाने के लिये हुआ था। इसी में तत्कालीन सोवियत संघ के प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन ने वीटो पावर का प्रस्ताव रखा।
- 1946 को पहली बार वीटो पावर का इस्तेमाल तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) ने किया था।
वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों- चीन, फ्राँस, रूस, यू.के. और अमेरिका के पास वीटो पावर है। स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पावर का इस्तेमाल करके उस फैसले को रोक सकता है। मसूद अज़हर के मामले में यही हुआ। सुरक्षा परिषद के चार स्थायी सदस्य उसे वैश्विक आतंकी घोषित करने के समर्थन में थे, लेकिन चीन उसके विरोध में था और उसने वीटो लगा दिया।
इसे अमेरिका और इज़राइल के सबंधों के परिप्रेक्ष्य में समझना होगा। सुरक्षा परिषद में भी जब-जब इज़राइली हितों पर आँच आती है, अमेरिका अपने वीटो अधिकार का इस्तेमाल करता है। ठीक ऐसा ही पाकिस्तान के लिये चीन और भारत के लिए रूस करता रहा है।
क्या होगा अगर वीटो पावर रखने वाला देश वोट ही न दे?
- यदि कोई स्थायी सदस्य यानी वीटो पावर रखने वाला देश किसी प्रस्तावित प्रस्ताव से पूरी तरह सहमत नहीं है, लेकिन वीटो भी नहीं डालना चाहता है, तो वह अलग रहने का विकल्प चुन सकता है। इस प्रकार यदि प्रस्ताव पर नौ वोट पक्ष में पड़ते हैं, तो उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
- वीटो पावर संभवतः एक स्थायी सदस्य और एक अस्थायी सदस्य के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 27 (3) के अनुसार, सुरक्षा परिषद "स्थायी सदस्यों के सहमति मतों" के साथ सभी निर्णय लेगी। वीटो पावर का विषय अत्यधिक विवादास्पद रहा है और वर्षों से संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में इस पर बहस भी होती रही है। यह परिषद के कामकाज के तरीकों की लगभग सभी चर्चाओं के संदर्भ में सबसे अधिक बार उठाए जाने वाले विषयों में से एक है। भारत इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की कई बार वकालत करता आ रहा है।
भारत के पक्ष में रूस का वीटो
- 1957 में रूस ने भारत के पक्ष में पहली बार कश्मीर मुद्दे पर भारत के लिए वीटो पावर का इस्तेमाल किया था।जिससे पाकिस्तान द्वारा लाये गए विसैन्यीकरण के संबंध में एक अस्थायी संयुक्त राष्ट्र बल के इस्तेमाल का प्रस्ताव रखा और द्विपक्षीय मुद्दा एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनने के पूर्व प्रस्ताव ख़ारिज हो गया।
- पुर्तगाल ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर को लागू करने की कोशिश की और एक प्रस्ताव प्रस्तावित किया कि भारत को गोवा से अपनी सेना वापस लेनी चाहिए। 1961 में रूस ने भारत के पक्ष में दूसरी बार गोवा मुद्दे पर भारत के लिए वीटो पावर का इस्तेमाल किया था। जिससे 1961 को गोवा अंततः पुर्तगाल के शासन से मुक्त हो गया। यह 'रूस' का 99वां वीटो था।
- 1962 में रूस अपने 100वें वीटो का इस्तेमाल किया और इस बार फिर से भारत के पक्ष में। UNSC में एक आयरिश प्रस्ताव ने भारत और पाकिस्तान से कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए एक दूसरे के साथ सीधे बातचीत करने का आग्रह किया। सात यूएनएससी सदस्यों ने इसका समर्थन किया, और उनमें से चार स्थायी सदस्य थे - अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और फिर, रूसी प्रतिनिधि प्लैटन दिमित्रिच मोरोज़ोव ने वीटो शक्ति का इस्तेमाल करके प्रस्ताव को शून्य बना दिया।
- 1971 में रूस ने भारत के पक्ष में चौथी बार वीटो का इस्तेमाल किया जब भारत बांग्लादेश को मुक्त करने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में लगा हुआ था, तब यूएसएसआर ने इस मुद्दे को सुनिश्चित करने के लिए तीन बार अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया। इससे हुआ ये कि कश्मीर कभी भी एक वैश्विक विषय न बनकर एक द्विपक्षीय मुद्दा बना रहा।
भारत को वीटो पावर देने की कब की गई पेशकश?- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता देने को लेकर हमेशा कोई न कोई पेंच फंसा रह जाता है.। अमेरिका की ओर से 17 मार्च 1970 में भारत की औद्योगिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक शक्ति के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर देने की पेशकश की गई।
वीटो (Veto)
- वीटो (Veto) लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है ‘मैं अनुमति नहीं देता हूँ।’
- 1920 में लीग ऑफ नेशंस की स्थापना के बाद ही वीटो अस्तित्व में आया।
- 1945 में यूक्रेन के शहर याल्टा में एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की योजना बनाने के लिये हुआ था। इसी में तत्कालीन सोवियत संघ के प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन ने वीटो पावर का प्रस्ताव रखा।
- 1946 को पहली बार वीटो पावर का इस्तेमाल तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) ने किया था।
वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों- चीन, फ्राँस, रूस, यू.के. और अमेरिका के पास वीटो पावर है। स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पावर का इस्तेमाल करके उस फैसले को रोक सकता है। मसूद अज़हर के मामले में यही हुआ। सुरक्षा परिषद के चार स्थायी सदस्य उसे वैश्विक आतंकी घोषित करने के समर्थन में थे, लेकिन चीन उसके विरोध में था और उसने वीटो लगा दिया।
इसे अमेरिका और इज़राइल के सबंधों के परिप्रेक्ष्य में समझना होगा। सुरक्षा परिषद में भी जब-जब इज़राइली हितों पर आँच आती है, अमेरिका अपने वीटो अधिकार का इस्तेमाल करता है। ठीक ऐसा ही पाकिस्तान के लिये चीन और भारत के लिए रूस करता रहा है।
क्या होगा अगर वीटो पावर रखने वाला देश वोट ही न दे?
- यदि कोई स्थायी सदस्य यानी वीटो पावर रखने वाला देश किसी प्रस्तावित प्रस्ताव से पूरी तरह सहमत नहीं है, लेकिन वीटो भी नहीं डालना चाहता है, तो वह अलग रहने का विकल्प चुन सकता है। इस प्रकार यदि प्रस्ताव पर नौ वोट पक्ष में पड़ते हैं, तो उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
- वीटो पावर संभवतः एक स्थायी सदस्य और एक अस्थायी सदस्य के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 27 (3) के अनुसार, सुरक्षा परिषद "स्थायी सदस्यों के सहमति मतों" के साथ सभी निर्णय लेगी। वीटो पावर का विषय अत्यधिक विवादास्पद रहा है और वर्षों से संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में इस पर बहस भी होती रही है। यह परिषद के कामकाज के तरीकों की लगभग सभी चर्चाओं के संदर्भ में सबसे अधिक बार उठाए जाने वाले विषयों में से एक है। भारत इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की कई बार वकालत करता आ रहा है।
- 1957 में रूस ने भारत के पक्ष में पहली बार कश्मीर मुद्दे पर भारत के लिए वीटो पावर का इस्तेमाल किया था।जिससे पाकिस्तान द्वारा लाये गए विसैन्यीकरण के संबंध में एक अस्थायी संयुक्त राष्ट्र बल के इस्तेमाल का प्रस्ताव रखा और द्विपक्षीय मुद्दा एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनने के पूर्व प्रस्ताव ख़ारिज हो गया।
- पुर्तगाल ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर को लागू करने की कोशिश की और एक प्रस्ताव प्रस्तावित किया कि भारत को गोवा से अपनी सेना वापस लेनी चाहिए। 1961 में रूस ने भारत के पक्ष में दूसरी बार गोवा मुद्दे पर भारत के लिए वीटो पावर का इस्तेमाल किया था। जिससे 1961 को गोवा अंततः पुर्तगाल के शासन से मुक्त हो गया। यह 'रूस' का 99वां वीटो था।
- 1962 में रूस अपने 100वें वीटो का इस्तेमाल किया और इस बार फिर से भारत के पक्ष में। UNSC में एक आयरिश प्रस्ताव ने भारत और पाकिस्तान से कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए एक दूसरे के साथ सीधे बातचीत करने का आग्रह किया। सात यूएनएससी सदस्यों ने इसका समर्थन किया, और उनमें से चार स्थायी सदस्य थे - अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रस्ताव को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और फिर, रूसी प्रतिनिधि प्लैटन दिमित्रिच मोरोज़ोव ने वीटो शक्ति का इस्तेमाल करके प्रस्ताव को शून्य बना दिया।
- 1971 में रूस ने भारत के पक्ष में चौथी बार वीटो का इस्तेमाल किया जब भारत बांग्लादेश को मुक्त करने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में लगा हुआ था, तब यूएसएसआर ने इस मुद्दे को सुनिश्चित करने के लिए तीन बार अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया। इससे हुआ ये कि कश्मीर कभी भी एक वैश्विक विषय न बनकर एक द्विपक्षीय मुद्दा बना रहा।
भारत को वीटो पावर देने की कब की गई पेशकश?
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता देने को लेकर हमेशा कोई न कोई पेंच फंसा रह जाता है.। अमेरिका की ओर से 17 मार्च 1970 में भारत की औद्योगिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक शक्ति के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर देने की पेशकश की गई।